Thursday, May 17, 2012
Saturday, April 21, 2012
Why People go to so called BABAs ?
जब लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी
का रास्ता छोड़ कर सरल तरीकों से बहुत अधिक धन कमाना या अन्य इच्छाएँ पूरी
करना चाहते हैं तो उन्हें कथित देवी देवताओं और चमत्कारिक बाबाओं की शरण
में जाना ही पड़ता है. यह सभी को मालूम है कि यदि ईश्वर कहीं है तो वह केवल
इंसान के अन्दर ही है. चमत्कारिक बाबाओं को प्रचारित प्रसारित करने में
हमारी सरकार की नीतियाँ व मीडिया भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितने
अन्धविश्वासी लोग.शायद कोई विश्वास न करे,मैंने जब से होश सम्भाला है,कभी
ईश्वर से भी अपने स्वयं के लिए कुछ नही माँगा,इंसान या किसी चमत्कारिक बाबा
से माँगना तो बहुत दूर की बात है. आज विज्ञापन का युग है तथा बेवकूफ बनाना
भी एक कला है.जो दूसरों को जितना अधिक बेवकूफ बनाने में सफल हो जाए वही
आज के युग में उतना ही अधिक बुद्धिमान है.शायद ही जीवन का कोई ऐसा
क्षेत्र हो जहां इस बेवकूफ बनाने वाली कला का धड़ल्ले से उपयोग नही किया जा
रहा हो.धर्म और अध्यात्म का क्षेत्र भी इस कला से अछूता नही है. विभिन्न
उत्पादों के टी.वी. आदि में प्रसारित विज्ञापन भी यही कार्य कर रहे हैं.
कोई क्रीम एक हफ्ते में भैंस को गोरा बनाने का दावा करती है तो कोई दवा
असाध्य रोगों को शर्तिया ठीक करने का दावा करती है.ऐसा शायद ही कोई उत्पाद
हो जो विज्ञापन में बताये गए दावों पर पूरा तो क्या आंशिक रूप से भी खरा
उतर सकता हो.जिन बाबाओं को धन और यश कमाने की इच्छा रहती है वे भी इसी
प्रकार प्रचार माध्यमों का सहारा लेते हैं. जिन्हें वास्तव में ईश्वरीय
शक्तियों से थोड़ा बहुत भी कुछ प्राप्त हो जाता है वे प्रचार से बहुत दूर
हिमालय की कंदराओं में शान्ति की खोज में लगे रहते हैं तथा जिन्हें ईश्वर
की कृपा से कुछ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है वे धन संग्रह ना कर अपना
जीवन परमार्थ व जनकल्याण के लिए लगा देते हैं.
Friday, March 30, 2012
संसद बनाम टीम अन्ना
विशेषाधिकार नोटिस के जवाब में अरविन्द केजरीवाल ने जो कुछ कहा है मैं उसका पूरी तरह से समर्थन करता हूँ. किसी को सम्मान देना या न देना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है तथा किसी भी व्यक्ति को इसके लिए बाध्य नही किया जा सकता.सम्मान माँगने से नही मिलता बल्कि जो इसको पाने का हक़दार है उसे स्वयं ही मिल जाता है. क्या आज देश के अधिकांश राजनीतिज्ञ इस सम्मान को पाने के हकदार हैं ? नहीं. १९४२ के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने "करो या मरो" का नारा दिया था. आज ७० वर्षों बाद यह "करो या मरो" का नारा एक बार फिर दोहराने की जरूरत है. उस समय की मांग थी "अंग्रेजों भारत छोडो". आज की माँग है " भ्रष्टाचारियो व अपराधियों संसद छोड़ो ". जब तक संसद में बैठे हुए भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अच्छे,ईमानदार व स्वच्छ छवि वाले व्यक्तियों से प्रतिस्थापित नही कर दिया जाता तब तक लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर की पवित्रता व सर्वोच्चता को पुनर्स्थापित कर इसका खोया हुआ सम्मान वापस नही लौटाया जा सकता. यह काम केवल टीम अन्ना का ही नहीं बल्कि संसदीय लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि अपराधियों और भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को संसद और विधान सभाओं से बाहर खदेड़ने के पुनीत कार्य में अपना हर संभव पुरजोर सहयोग करें.
भारत माता की जय.
!!!जय हिंद !!!
भारत माता की जय.
!!!जय हिंद !!!
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Team Anna
Tuesday, March 20, 2012
Increasing retirement age of professors
CHHATTISGARH ASSEMBLY : CHIEF MINISTER DECLARES RETIREMENT AGE OF TEACHERS IN HIGHER EDUCATION WILL INCREASE FROM 62 TO 65
सेवारत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने की मांग हमेशा होती रहती है तथा सरकारें भी अपनी सुविधानुसार आयु सीमा में वृद्धि करती रहती हैं. संसद और विधान सभाओं में बैठे राजनीतिक लोगों को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने की आवश्यकता महसूस नही होती.जो लोग अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की मांग करते हैं व मांग मंजूर होने पर खुश हो कर एक दूसरे को बधाई देते हैं वे शायद यह नहीं सोचते या अपने निहित स्वार्थ के कारण सोचना नहीं चाहते कि ऐसा करने से बेरोजगारी की लम्बी कतारों में लगे नवयुवकों को क्या नुकसान होने वाला है. उन्हें और इंतज़ार करना पडेगा तथा कई नवयुवक सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ जाने के कारण सेवा में भरती की उम्र ही पार कर जायेंगे. दुर्भाग्य की बात यह है कि नवयुवकों के हितों की बात करने वाला कोई भी संगठन इस बारे में नही सोचता.यहाँ तक कि छात्रों की ओर से भी इस प्रकार की बात नही उठती कि सेवारत व्यक्तियों की आयु सीमा बढ़ने से उनके भविष्य पर विपरीत असर पडेगा.
उच्च शिक्षा में आयु सीमा बढ़ाने के पीछे सरकार शिक्षकों की कमी को आधार बनाती है पर नए शिक्षकों की भरती के लिए कारगर कदम नही उठाती.यदि कार्यरत शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के स्थान पर नई भर्तियाँ की जाएँ तो जहाँ एक ओर बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मिलेगा वहीं सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम पड़ेगा. सेवानिवृत्ति के समय अपने वेतन के अधिकतम पर रहने वाला व्यक्ति नई भर्ती वाले व्यक्ति से लगभग चार गुना वेतन पाता है ,ऐसे में एक व्यक्ति के वेतन में चार नई नियुक्तियां की जा सकती हैं.वैसे भी ६२ वर्ष की आयु प्राप्त करते करते अधिकाँश व्यक्तियों की शारीरिक क्षमता ,पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा अन्य कारणों से अपने कर्त्तव्य के प्रति रूचि कम हो जाती है, जब कि नया व्यक्ति पूरे उत्साह,क्षमता व ऊर्जा से कार्य करता है. यह भी उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि की मांग करने वाले कई व्यक्ति तो ऐसे होते हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में अपने मूल कर्त्तव्य को प्राथमिकता ही नहीं दी .ऐसे लोग बढी हुई आयु सीमा में क्या कुछ कर पायेंगे ? सरकारें शिक्षकों की कमी से निपटना ही चाहती हैं तो वे कर्तव्यनिष्ठ ,योग्य व सक्षम शिक्षकों को आवश्यकतानुसार पुनर्नियुक्ति या संविदा आधार पर नियुक्ति दे सकती है.
सेवारत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने की मांग हमेशा होती रहती है तथा सरकारें भी अपनी सुविधानुसार आयु सीमा में वृद्धि करती रहती हैं. संसद और विधान सभाओं में बैठे राजनीतिक लोगों को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने की आवश्यकता महसूस नही होती.जो लोग अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की मांग करते हैं व मांग मंजूर होने पर खुश हो कर एक दूसरे को बधाई देते हैं वे शायद यह नहीं सोचते या अपने निहित स्वार्थ के कारण सोचना नहीं चाहते कि ऐसा करने से बेरोजगारी की लम्बी कतारों में लगे नवयुवकों को क्या नुकसान होने वाला है. उन्हें और इंतज़ार करना पडेगा तथा कई नवयुवक सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ जाने के कारण सेवा में भरती की उम्र ही पार कर जायेंगे. दुर्भाग्य की बात यह है कि नवयुवकों के हितों की बात करने वाला कोई भी संगठन इस बारे में नही सोचता.यहाँ तक कि छात्रों की ओर से भी इस प्रकार की बात नही उठती कि सेवारत व्यक्तियों की आयु सीमा बढ़ने से उनके भविष्य पर विपरीत असर पडेगा.
उच्च शिक्षा में आयु सीमा बढ़ाने के पीछे सरकार शिक्षकों की कमी को आधार बनाती है पर नए शिक्षकों की भरती के लिए कारगर कदम नही उठाती.यदि कार्यरत शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के स्थान पर नई भर्तियाँ की जाएँ तो जहाँ एक ओर बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मिलेगा वहीं सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम पड़ेगा. सेवानिवृत्ति के समय अपने वेतन के अधिकतम पर रहने वाला व्यक्ति नई भर्ती वाले व्यक्ति से लगभग चार गुना वेतन पाता है ,ऐसे में एक व्यक्ति के वेतन में चार नई नियुक्तियां की जा सकती हैं.वैसे भी ६२ वर्ष की आयु प्राप्त करते करते अधिकाँश व्यक्तियों की शारीरिक क्षमता ,पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा अन्य कारणों से अपने कर्त्तव्य के प्रति रूचि कम हो जाती है, जब कि नया व्यक्ति पूरे उत्साह,क्षमता व ऊर्जा से कार्य करता है. यह भी उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि की मांग करने वाले कई व्यक्ति तो ऐसे होते हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में अपने मूल कर्त्तव्य को प्राथमिकता ही नहीं दी .ऐसे लोग बढी हुई आयु सीमा में क्या कुछ कर पायेंगे ? सरकारें शिक्षकों की कमी से निपटना ही चाहती हैं तो वे कर्तव्यनिष्ठ ,योग्य व सक्षम शिक्षकों को आवश्यकतानुसार पुनर्नियुक्ति या संविदा आधार पर नियुक्ति दे सकती है.
Wednesday, January 4, 2012
AIM OF TEAM ANNA ?
First of all Team Anna must decide what is their ultimate aim.If they want to fight corruption and want a change in the system they should concentrate on awakening the people to vote for good and honest persons.They must also understand that in present political system where all the political parties are more or less the same,opposing any particular political party in the elections means supporting the other corrupt party. By doing so they will be blamed to have a political agenda and their movement will loose ground.Also in parliamentary democracy parliament is supreme so long as law making is concerned and no Govt will accept all the demands of opposition whether the agitation is led by a political party or any social activist.A change in system can be achieved by ballot only.If people are really awakened they will vote for good persons only otherwise it is of no use wasting time and energy.Till date common people believe that they (team Anna) don't have any hidden political agenda,though political leaders trying their best to prove them brand ambassador of a particular party. or organisation.If they want a political change they must form a joint forum of like minded persons and field their own clean independent candidates in parliamentary elections otherwise they should concentrate on social issues only like prohibition,dowry,saving girl child ,population control etc.
Tuesday, December 27, 2011
कमजोर लोकपाल, पर शुरुआत अच्छी ...
किसी भी जन आन्दोलन में लगातार एक सी भीड़ नही रह सकती.यह बात तो आन्दोलन की अगुवाई कर रहे लोगों और समर्थकों को समझ में आनी ही चाहिए.सरकारें इसी तथ्य का लाभ उठाने के लिए आन्दोलनों को लंबा खींचने का प्रयास करती हैं.वैसे भी यह सर्व विदित है कि प्रजातंत्र में कानून संसद में ही बन सकता है .सामाजिक आन्दोलन क़ानून के प्रावधानों में बाहर रह कर एक हद तक ही प्रभावी हस्तक्षेप कर सकते हैं.ऐसा लोकपाल मामले में भी हो रहा है.यह अन्ना हजारे के आन्दोलन का ही प्रभाव है कि आजादी के चौंसठ वर्षों बाद तथा पूर्व में नौ बार संसद में रखे जाने के बावजूद पारित न हो पाने के बाद इसे लोकसभा ने पारित किया है.अभी भले ही यह कमजोर लोकपाल है लेकिन एक बार संसद की मुहर लग जाने के बाद इस क़ानून में संशोधनों के रास्ते खुले रहेंगे.अभी तो यह देखना बाक़ी है कि राज्य सभा में ऊँट किस करवट बैठता है क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नही है.जो भी हो कमजोर ही सही, इसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है.वैसे भी किसी कानून द्वारा भ्रष्टाचार पर पूरी तरह रोक लगा पाना संभव नही है.उसके लिए हर व्यक्ति को अपने स्तर पर कार्य करना पडेगा.सामाजिक नेताओं को आन्दोलनों के अतिरिक्त पूरे देश में जन जागरण अभियान चलाना पडेगा तथा जनता को भी यह अच्छी तरह समझना पड़ेगा कि वह चाहती क्या है ? हमारी लड़ाई दूसरा कब तक और क्यों लड़ता रहेगा ?
Wednesday, December 21, 2011
Why waste money to hire ground for people's agitation ?
I think Govt is not going to take any action on the basis of Anna's third agitation.They have made a prestige point not to accept most of the provisions suggested by civil society in its prepared Janlokpal.Govt neither intends to keep CBI under Lokpal nor interested in giving autonomous constitutional status to the CBI.In democracy political parties make their strategy keeping votes in minds. UPA cabinet has already cleared the food security bill and they presume to have secured the votes of poor and are assured to come in power again like some states got advantage of cheap food grains for poor in the past. So they are not much worried about the impact of Anna's agitation on their votes.Some states are trying to give benefit of reservation to scheduled tribes or Muslims or taking some other populist steps just to get the votes. Team Anna doesn't have any vote catching power as they have not to contest any elections. They can at the most campaign against congress and what will be the effect of their appeal on voters can't be predicted as of now. In Hissar it was a question of only one constituency , that too the defeat of congress candidate was predetermined there. I don't think a pro or anti campaign can be run in a general election without a very strong organization because at the time of voting the voters have many issues and priorities except corruption including corrupt practices. Everyone in the crowd supporting Anna is not honest .Corrupts also support his agitation with their own vested interests. The so called intellectuals and awakened persons are more dangerous because they know how to manipulate the things in their favor.They will be with Anna till their interests do not suffer.After a symbolic final agitation of 3 days Team Anna will have to undertake rigorous awakening campaign throughout the country from grass root level if they really want a change in the political and social system of our country. The symbolic agitation and "Jail bharo" can be led from any place even from Ralegan Siddhi without wasting lacs of rupees to hire a ground in Delhi or Mumbai.
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