Tuesday, December 27, 2011
कमजोर लोकपाल, पर शुरुआत अच्छी ...
किसी भी जन आन्दोलन में लगातार एक सी भीड़ नही रह सकती.यह बात तो आन्दोलन की अगुवाई कर रहे लोगों और समर्थकों को समझ में आनी ही चाहिए.सरकारें इसी तथ्य का लाभ उठाने के लिए आन्दोलनों को लंबा खींचने का प्रयास करती हैं.वैसे भी यह सर्व विदित है कि प्रजातंत्र में कानून संसद में ही बन सकता है .सामाजिक आन्दोलन क़ानून के प्रावधानों में बाहर रह कर एक हद तक ही प्रभावी हस्तक्षेप कर सकते हैं.ऐसा लोकपाल मामले में भी हो रहा है.यह अन्ना हजारे के आन्दोलन का ही प्रभाव है कि आजादी के चौंसठ वर्षों बाद तथा पूर्व में नौ बार संसद में रखे जाने के बावजूद पारित न हो पाने के बाद इसे लोकसभा ने पारित किया है.अभी भले ही यह कमजोर लोकपाल है लेकिन एक बार संसद की मुहर लग जाने के बाद इस क़ानून में संशोधनों के रास्ते खुले रहेंगे.अभी तो यह देखना बाक़ी है कि राज्य सभा में ऊँट किस करवट बैठता है क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नही है.जो भी हो कमजोर ही सही, इसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है.वैसे भी किसी कानून द्वारा भ्रष्टाचार पर पूरी तरह रोक लगा पाना संभव नही है.उसके लिए हर व्यक्ति को अपने स्तर पर कार्य करना पडेगा.सामाजिक नेताओं को आन्दोलनों के अतिरिक्त पूरे देश में जन जागरण अभियान चलाना पडेगा तथा जनता को भी यह अच्छी तरह समझना पड़ेगा कि वह चाहती क्या है ? हमारी लड़ाई दूसरा कब तक और क्यों लड़ता रहेगा ?
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