विशेषाधिकार नोटिस के जवाब में अरविन्द केजरीवाल ने जो कुछ कहा है मैं उसका पूरी तरह से समर्थन करता हूँ. किसी को सम्मान देना या न देना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है तथा किसी भी व्यक्ति को इसके लिए बाध्य नही किया जा सकता.सम्मान माँगने से नही मिलता बल्कि जो इसको पाने का हक़दार है उसे स्वयं ही मिल जाता है. क्या आज देश के अधिकांश राजनीतिज्ञ इस सम्मान को पाने के हकदार हैं ? नहीं. १९४२ के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने "करो या मरो" का नारा दिया था. आज ७० वर्षों बाद यह "करो या मरो" का नारा एक बार फिर दोहराने की जरूरत है. उस समय की मांग थी "अंग्रेजों भारत छोडो". आज की माँग है " भ्रष्टाचारियो व अपराधियों संसद छोड़ो ". जब तक संसद में बैठे हुए भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अच्छे,ईमानदार व स्वच्छ छवि वाले व्यक्तियों से प्रतिस्थापित नही कर दिया जाता तब तक लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर की पवित्रता व सर्वोच्चता को पुनर्स्थापित कर इसका खोया हुआ सम्मान वापस नही लौटाया जा सकता. यह काम केवल टीम अन्ना का ही नहीं बल्कि संसदीय लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि अपराधियों और भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को संसद और विधान सभाओं से बाहर खदेड़ने के पुनीत कार्य में अपना हर संभव पुरजोर सहयोग करें.
भारत माता की जय.
!!!जय हिंद !!!