Saturday, January 19, 2013

राहुल गांधी के लिये :: अभी नहीं तो शायद कभी नहीं


कांग्रेस के दो दिवसीय चिंतन शिविर के कई महीनों पहले या यों कह लीजिये वर्षों पहले से यह मांग उठती रही है कि राहुल गांधी को पार्टी या सरकार में कोई बहुत बड़ी भूमिका दी जानी चाहिए.कांग्रेस में उनके समर्थक यह भी कहते थकते नजर नहीं आते कि उन्हें देश के भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में घोषित कर उनके नेत्रत्व में ही २०१४ का लोकसभा चुनाव लड़ा जाए.कांग्रेस में ऐसा है भी कौन जो न चाहते हुए भी उनकी उम्मीदवारी का सार्वजनिक रूप से विरोध कर सके या कह सके कि राहुल गांधी के नेतृत्व में अभी तक ६-७ विधान सभा चुनाव लड़े जा चुके हैं तथा ऐसा कुछ भी हासिल नही हुआ जिसकी उम्मीद की जा रही थी.

वैसे तो राजनीति में कुछ भी नही कहा जा सकता कि कब कौन सा गणित काम कर जाए.कभी कभी सारे गणित फेल हो जाते हैं और कोई नया ही परिदृश्य उभर कर सामने आ सकता है,परन्तु एकदम किसी अप्रत्याशित घटना को छोड़ दिया जाए तो राजनीति की पारी क्रिकेट की पारी की तरह अनिश्चितता भरी भी नहीं होती है.अभी अभी जब मैं इस नोट को लिख रहा हूं तभी यह समाचार आ गया है कि राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया है.

अत:सर्व प्रथम मैं उन्हें कांग्रेस की नंबर दो की कुर्सी औपचारिक रूप से मिलने की बधाई देता हूं.जहां तक उन्हें औपचारिक रूप से नंबर २ की कुर्सी देने की बात है,वे तो पहले से ही पार्टी में दूसरे नंबर पर थे.इससे कांग्रेस को कितना नफा या नुक़सान होगा, इस पर कोई भी राय व्यक्त करना जल्दबाजी होगी.सोनिया गांधी,कांग्रेस के कई नेता व स्वयं राहुल गांधी भी यही चाहते हैं कि वे देश के प्रधान मंत्री बनें.प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने भी कई बार उन्हें केंद्र में मंत्री पद देने की इच्छा व्यक्त की थी पर राहुल गांधी स्वयं ही इसके लिये तैयार नही हुए या इस तरह का आत्मविश्वास नहीं दिखा सके.

कार्य समिति की बैठक के फैसले के पहले कयास लगाए जा रहे थे कि राहुल गांधी को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है या कोई बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है. एक तटस्थ और निष्पक्ष  विष्लेषक के रूप में मेरी अपनी सोच कुछ और थी.मैं सोचता था कि बेहतर होता कि कांग्रेस पार्टी अपने चिंतन शिविर का लाभ ले कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित करने का निर्णय ले लेती.इससे एक तो प्रधानमंत्री जी, जो बहुत खुले तौर पर निर्भीकतापूर्वक अपने पद का निर्वाह और सदुपयोग नही कर पा रहे हैं उन्हें भी आराम करने का मौका मिल जाता और वे एक कुशल अर्थ शास्त्री के रूप में देश की सेवा कर सकते तथा राहुल गांधी एक तो यू.पी.ए २ के बचे हुए कार्यकाल में प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए देश के सामने वर्तमान में उपस्थित विभिन्न चुनौतियों से निपटने में अपनी क्षमता व कुशलता का परिचय दे पाते और आगामी लोकसभा चुनावों में बेहतर भूमिका निभा सकते.शायद यह उनके लिये और कांग्रेस पार्टी के लिये अच्छा मौक़ा था और जनता भी उन्हें कम से कम एक साल तो परखने के लिये देती ही.भविष्य में पता नहींवे प्रधान मंत्री बन पायें या नहीं या फिर आडवाणी जी की तरह पी एम इन वेटिंग ही रह जायें.

जो भी हो,अभी भी उनके लिये मौक़ा है कुछ कर दिखाने का. वे दिखा सकें कि उनके पास कौन सी नीतियां हैं,कौन सी राजनीतिक सोच है.कौन सा करिश्मा है.कौन सा जोश है कि वो देश को कोई नयी दिशा दे सकते हैं.यदि अभी नहीं तो शायद फिर कभी नहीं.

Tuesday, December 18, 2012

पदोन्नति में आरक्षण से लाभ किसे ?


राज्य सभा में पदोन्नति में आरक्षण विधेयक पर वोटिंग से सभी राजनीतिक दलों ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।वोट की राजनीति के अतिरिक्त देश की,समाज की किसी को चिंता नहीं  है। हर दल को इस बात की चिंता रही है कि विधेयक के समर्थन या विरोध से कहीं उसका वोट बैंक न खिसक जाए।उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ही मुख्य लड़ाई थी जहां मायावती अपने दलित वोट को मजबूत करने विधेयक का समर्थन कर रही हैं तो मुलायम सिंह यह जानते हुए कि  मायावती के दलित वोट को तो विधेयक का समर्थन करने के बावजूद भी अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता विरोध में डटे हैं ।उन्हें विशवास है कि  इस विधेयक का विरोध करने से उनका ओ बी सी वोटर विशेष रूप से यादव समुदाय तो उनके साथ बना ही रहेगा तथा आरक्षण  विरोधी सवर्ण समाज भी उनके साथ आ सकता है।आरक्षण में मुस्लिमों को जोड़ने के हिमायती मुलायम सिंह रहे हैं।ऐसे में यह माना जा सकता है कि आरक्षण विधेयक का विरोध करने से मुलायम सिंह की पार्टी को उत्तर प्रदेश में बसपा की अपेक्षा थोड़ा लाभ हो सकता है।बसपा को न कोई लाभ होगा न नुकसान,पर कांग्रेस और भाजपा को विधेयक के समर्थन से कोई लाभ होता दिखाई नहीं  देता।अब जनता इतनी मूर्ख नहीं रह गयी है कि वह बातों को न समझे।यह बात अलग है कि  राजनीतिक दल उसे मूर्ख समझ कर अपनी कुटिल चालें चलते रहते हैं।पदोन्नति में आरक्षण से यदि लाभ होगा तो केवल उन दलितों का होगा जो नौकरी में हैं या रहेंगे।जो नौकरी में ही नहीं हैं उन्हें किस तरह से लाभ होगा?आज देश में आरक्षित वर्ग का भी 90 फीसदी से अधिक गरीब व सामाजिक रूप से पिछडा तबका जो नौकरियों के लिए अपेक्षित शिक्षा प्राप्त न होने के कारण आरक्षण के बावजूद नौकरी नहीं पा सकता,पदोन्नति कहां से पायेगा?बचे लगभग 10 फीसदी जो दलितों में भी सम्पन्न होने के कारण अच्छी नौकरियां पा सकते हैं उन्हीं के वोटों पर राजनीति करते देश के भविष्य व सामाजिक न्याय को ताक पर रख राजनीति करने तुले हुए हैं ये राजनीतिक लोग,जिन्हें न तो स्वयं नौकरी करनी है न ही अपने पुत्र पुत्रियों को कोई छोटी मोटी नौकरी करानी है। बस समाज के विभिन्न वर्ग इन लोगों की वजह से आपस में लड़ते रहें और सामाजिक सदभाव कभी पैदा न हो सके तथा ये लोग अंग्रेजों की फ़ूट डालो और राज्य करो की नीति का अनुसरण करते रहें

Friday, July 27, 2012

Blogs in Blogger not found ?

I can't find my blog in search engines. Has blogger changed its policy for free bloggers?

Thursday, May 17, 2012

Our Next President

 
If a tribal becomes the president it is all right and welcome. But there should not be any precondition that the president must belong to a particular class or society.Whoever is most deserving and acceptable to all must be the president.The highest position should not be confined to narrow lines of caste,religion,creed,gender etc.

Saturday, April 21, 2012

Why People go to so called BABAs ?

जब लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी का रास्ता छोड़ कर सरल तरीकों से बहुत अधिक धन कमाना या अन्य इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं तो उन्हें कथित देवी देवताओं और चमत्कारिक बाबाओं की शरण में जाना ही पड़ता है. यह सभी को मालूम है कि यदि ईश्वर कहीं है तो वह केवल इंसान के अन्दर ही है. चमत्कारिक बाबाओं को प्रचारित प्रसारित करने में हमारी सरकार की नीतियाँ व मीडिया भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितने अन्धविश्वासी लोग.शायद कोई विश्वास न करे,मैंने जब से होश सम्भाला है,कभी ईश्वर से भी अपने स्वयं के लिए कुछ नही माँगा,इंसान या किसी चमत्कारिक बाबा से माँगना तो बहुत दूर की बात है. आज विज्ञापन का युग है तथा बेवकूफ बनाना भी एक कला है.जो दूसरों को जितना अधिक बेवकूफ बनाने में सफल हो जाए वही आज के युग में उतना ही अधिक बुद्धिमान है.शायद ही जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां इस बेवकूफ बनाने वाली कला का धड़ल्ले से उपयोग नही किया जा रहा हो.धर्म और अध्यात्म का क्षेत्र भी इस कला से अछूता नही है. विभिन्न उत्पादों के टी.वी. आदि में प्रसारित विज्ञापन भी यही कार्य कर रहे हैं. कोई क्रीम एक हफ्ते में भैंस को गोरा बनाने का दावा करती है तो कोई दवा असाध्य रोगों को शर्तिया ठीक करने का दावा करती है.ऐसा शायद ही कोई उत्पाद हो जो विज्ञापन में बताये गए दावों पर पूरा तो क्या आंशिक रूप से भी खरा उतर सकता हो.जिन बाबाओं को धन और यश कमाने की इच्छा रहती है वे भी इसी प्रकार प्रचार माध्यमों का सहारा लेते हैं. जिन्हें वास्तव में ईश्वरीय शक्तियों से थोड़ा बहुत भी कुछ प्राप्त हो जाता है वे प्रचार से बहुत दूर हिमालय की कंदराओं में शान्ति की खोज में लगे रहते हैं तथा जिन्हें ईश्वर की कृपा से कुछ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है वे धन संग्रह ना कर अपना जीवन परमार्थ व जनकल्याण के लिए लगा देते हैं.

Friday, March 30, 2012

संसद बनाम टीम अन्ना

विशेषाधिकार नोटिस के जवाब में अरविन्द केजरीवाल ने जो कुछ कहा है मैं उसका पूरी तरह से समर्थन करता हूँ. किसी को सम्मान देना या न देना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है तथा किसी भी व्यक्ति को इसके लिए बाध्य नही किया जा सकता.सम्मान माँगने से नही मिलता बल्कि जो इसको पाने का हक़दार है उसे स्वयं ही मिल जाता है. क्या आज देश के अधिकांश राजनीतिज्ञ इस सम्मान को पाने के हकदार हैं ? नहीं. १९४२ के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने "करो या मरो" का नारा दिया था. आज ७० वर्षों बाद यह "करो या मरो" का नारा एक बार फिर दोहराने की जरूरत है. उस समय की मांग थी "अंग्रेजों भारत छोडो". आज की माँग है " भ्रष्टाचारियो व अपराधियों संसद छोड़ो ". जब तक संसद में बैठे हुए भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अच्छे,ईमानदार व स्वच्छ छवि वाले व्यक्तियों से प्रतिस्थापित नही कर दिया जाता तब तक लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर की पवित्रता व सर्वोच्चता को पुनर्स्थापित कर इसका खोया हुआ सम्मान वापस नही लौटाया जा सकता. यह काम केवल टीम अन्ना का ही नहीं बल्कि संसदीय लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि अपराधियों और भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को संसद और विधान सभाओं से बाहर खदेड़ने के पुनीत कार्य में अपना हर संभव पुरजोर सहयोग करें.
भारत माता की जय.
!!!जय हिंद !!!

Tuesday, March 20, 2012

Increasing retirement age of professors

CHHATTISGARH ASSEMBLY : CHIEF MINISTER DECLARES RETIREMENT AGE OF TEACHERS IN HIGHER EDUCATION WILL INCREASE FROM 62 TO 65



सेवारत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने की मांग हमेशा होती रहती है तथा सरकारें भी अपनी सुविधानुसार आयु सीमा में वृद्धि करती रहती हैं. संसद और विधान सभाओं में बैठे राजनीतिक लोगों को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने की आवश्यकता महसूस नही होती.जो लोग अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की मांग करते हैं व मांग मंजूर होने पर खुश हो कर एक दूसरे को बधाई देते हैं वे शायद यह नहीं सोचते या अपने निहित स्वार्थ के कारण सोचना नहीं चाहते कि ऐसा करने से बेरोजगारी की लम्बी कतारों में लगे नवयुवकों को क्या नुकसान होने वाला है. उन्हें और इंतज़ार करना पडेगा तथा कई नवयुवक सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ जाने के कारण सेवा में भरती की उम्र ही पार कर जायेंगे. दुर्भाग्य की बात यह है कि नवयुवकों के हितों की बात करने वाला कोई भी संगठन इस बारे में नही सोचता.यहाँ तक कि छात्रों की ओर से भी इस प्रकार की बात नही उठती कि सेवारत व्यक्तियों की आयु सीमा बढ़ने से उनके भविष्य पर विपरीत असर पडेगा.
उच्च शिक्षा में आयु सीमा बढ़ाने के पीछे सरकार शिक्षकों की कमी को आधार बनाती है पर नए शिक्षकों की भरती के लिए कारगर कदम नही उठाती.यदि कार्यरत शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के स्थान पर नई भर्तियाँ की जाएँ तो जहाँ एक ओर बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मिलेगा वहीं सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम पड़ेगा. सेवानिवृत्ति के समय अपने वेतन के अधिकतम पर रहने वाला व्यक्ति नई भर्ती वाले व्यक्ति से लगभग चार गुना वेतन पाता है ,ऐसे में एक व्यक्ति के वेतन में चार नई नियुक्तियां की जा सकती हैं.वैसे भी ६२ वर्ष की आयु प्राप्त करते करते अधिकाँश व्यक्तियों की शारीरिक क्षमता ,पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा अन्य कारणों से अपने कर्त्तव्य के प्रति रूचि कम हो जाती है, जब कि नया व्यक्ति पूरे उत्साह,क्षमता व ऊर्जा से कार्य करता है. यह भी उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि की मांग करने वाले कई व्यक्ति तो ऐसे होते हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में अपने मूल कर्त्तव्य को प्राथमिकता ही नहीं दी .ऐसे लोग बढी हुई आयु सीमा में क्या कुछ कर पायेंगे ? सरकारें शिक्षकों की कमी से निपटना ही चाहती हैं तो वे कर्तव्यनिष्ठ ,योग्य व सक्षम शिक्षकों को आवश्यकतानुसार पुनर्नियुक्ति या संविदा आधार पर नियुक्ति दे सकती है.