Tuesday, December 18, 2012

पदोन्नति में आरक्षण से लाभ किसे ?


राज्य सभा में पदोन्नति में आरक्षण विधेयक पर वोटिंग से सभी राजनीतिक दलों ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।वोट की राजनीति के अतिरिक्त देश की,समाज की किसी को चिंता नहीं  है। हर दल को इस बात की चिंता रही है कि विधेयक के समर्थन या विरोध से कहीं उसका वोट बैंक न खिसक जाए।उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ही मुख्य लड़ाई थी जहां मायावती अपने दलित वोट को मजबूत करने विधेयक का समर्थन कर रही हैं तो मुलायम सिंह यह जानते हुए कि  मायावती के दलित वोट को तो विधेयक का समर्थन करने के बावजूद भी अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता विरोध में डटे हैं ।उन्हें विशवास है कि  इस विधेयक का विरोध करने से उनका ओ बी सी वोटर विशेष रूप से यादव समुदाय तो उनके साथ बना ही रहेगा तथा आरक्षण  विरोधी सवर्ण समाज भी उनके साथ आ सकता है।आरक्षण में मुस्लिमों को जोड़ने के हिमायती मुलायम सिंह रहे हैं।ऐसे में यह माना जा सकता है कि आरक्षण विधेयक का विरोध करने से मुलायम सिंह की पार्टी को उत्तर प्रदेश में बसपा की अपेक्षा थोड़ा लाभ हो सकता है।बसपा को न कोई लाभ होगा न नुकसान,पर कांग्रेस और भाजपा को विधेयक के समर्थन से कोई लाभ होता दिखाई नहीं  देता।अब जनता इतनी मूर्ख नहीं रह गयी है कि वह बातों को न समझे।यह बात अलग है कि  राजनीतिक दल उसे मूर्ख समझ कर अपनी कुटिल चालें चलते रहते हैं।पदोन्नति में आरक्षण से यदि लाभ होगा तो केवल उन दलितों का होगा जो नौकरी में हैं या रहेंगे।जो नौकरी में ही नहीं हैं उन्हें किस तरह से लाभ होगा?आज देश में आरक्षित वर्ग का भी 90 फीसदी से अधिक गरीब व सामाजिक रूप से पिछडा तबका जो नौकरियों के लिए अपेक्षित शिक्षा प्राप्त न होने के कारण आरक्षण के बावजूद नौकरी नहीं पा सकता,पदोन्नति कहां से पायेगा?बचे लगभग 10 फीसदी जो दलितों में भी सम्पन्न होने के कारण अच्छी नौकरियां पा सकते हैं उन्हीं के वोटों पर राजनीति करते देश के भविष्य व सामाजिक न्याय को ताक पर रख राजनीति करने तुले हुए हैं ये राजनीतिक लोग,जिन्हें न तो स्वयं नौकरी करनी है न ही अपने पुत्र पुत्रियों को कोई छोटी मोटी नौकरी करानी है। बस समाज के विभिन्न वर्ग इन लोगों की वजह से आपस में लड़ते रहें और सामाजिक सदभाव कभी पैदा न हो सके तथा ये लोग अंग्रेजों की फ़ूट डालो और राज्य करो की नीति का अनुसरण करते रहें

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