आम
आदमी पार्टी जिस तरह जनलोकपाल आन्दोलन से उपज कर राजनीति में आई, उसने नयी
तरह की राजनीति की शुरूआत करने का दावा किया और मीडिया ने उनके राजनीति
करने के तथाकथित नए ढंग को जिस तरह से प्रचारित किया उसे देख कर आम जनता को
यह अनुभूति होना स्वाभाविक है कि यह अपनी तरह की एक नयी पहल है. इस
सम्बन्ध में सबसे पहले यह समझना पड़ेगा कि इस पार्टी के संस्थापकों की मूल
विचारधारा क्या है ? क्या ये लोग किसी ख़ास विचार धारा से जुड़े लोग हैं या
फिर"कहीं की ईँट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा" वाली बात है ?
दरअसल पूरे देश में बहुत बड़ी संख्या में लोग वर्तमान सड़ी गली राजनीतिक व्यवस्था से तंग आ चुके हैं और जनता का बहुत बड़ा वर्ग व्यवस्था परिवर्तन की चाह रखता है. आये दिन रोजमर्रा के कामों से लेकर बड़े बड़े सौदों में बढ़ते भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के ऊपर किसी तरह की लगाम न लगा पाने के कारण भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगा सकने वाले क़ानून कीआवश्यकता महसूस की गयी.इस प्रयोजन से सिविल सोसायटी के कुछ सदस्यों ने मिलकर जनलोकपाल जैसे एक क़ानून का खाका तैयार किया और प्रसिद्ध समाज सेवी अन्ना हजारे के चेहरे को सामने रख एक देशव्यापी आन्दोलन चलाया. अन्ना हजारे के आन्दोलन को पूरे देश में जिस तरह का समर्थन मिला वह अभूतपूर्व था. शुरूआत में तो ऐसे संकेत भी मिले कि जनलोकपाल क़ानून को संसद की स्वीकृति मिल जायेगी पर राजनीतिक दलों के अंतर्विरोध के कारण हर बार यह जनलोकपाल बिल किसी न किसी कारण से पारित नहीं हो सका.
अन्ना केआन्दोलन से समाज के हर विचारधारा के लोग जुड़े थे. इस आन्दोलन में ऐसे लोग भी थे जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ भी थीं जो किन्हीं कारणों से पूरी नहीं हो पायीं थीं. विभिन्न राजनीतिक संगठनों से जुड़े ऐसे लोग भी इस आन्दोलन में सम्मिलित थे जो अपने दलों में हाशिये पर आ गए थे. आन्दोलन को मिले देशव्यापी जन समर्थन से कुछ लोगों को लगा कि इस आन्दोलन का लाभ लेकर वे व्यवस्था परिवर्तन कर सकते हैं और उनकी इसी इच्छा ने आन्दोलन को किसी सफल परिणिति की ओर न पहुँचते देख एक नयी राजनीतिक पार्टी का गठन कर डाला,जिसे अत्यधिक विचार मनन के बाद आम आदमी पार्टी नाम दिया. इस पार्टी का संयोजक एक ईमानदार,संघर्षशील व स्वच्छ छवि वाले गैर राजनीतिक व्यक्ति श्री अरविन्द केजरीवाल को बनाया गया. मानाजाता है कि अन्ना हजारे के पूरे आन्दोलन के पीछे अरविन्द केजरीवाल ने ही मुख्य रणनीतिकार की भूमिका निभाई थी.
आम आदमी पार्टी के संस्थापकों ने बड़ी ही कुशलता से दिल्ली विधान सभा चुनाव के ठीक एक वर्ष पूर्व पूरी रणनीति के अनुसार अपनी पार्टी को दिल्ली विधान सभा के चुनावों में उतारने के उद्देश्य से गठित किया और उसके कार्यक्रम चलाये. दिल्लीविधानसभा के चुनावों से ही अपनी पार्टी की चुनावी राजनीति की शुरूआत करने के पीछे इन लोगों का उद्देश्य साफ़ था कि दिल्ली देश की राजधानी होने के कारण वहां पर होने वाली राजनीतिक गतिविधियों को पूरे देश में किसी भी अन्य स्थान की अपेक्षा अधिक प्रचार प्रसार मिलेगा. वैसे भी अन्ना व रामदेव के बड़े आन्दोलनों का केंद्र बिंदु दिल्ली ही थे. कामन वैल्थ घोटाला, 2 जी घोटाला आदि के कारण दिल्ली हमेशा सुर्ख़ियों में बनी रही. इसी बीच १६ दिसंबर २०१२ की दिल्ली गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और दिल्ली एक बार फिर स्व स्फूर्त जन आन्दोलनों का केंद्र बन गई थी. बढ़ती हुई महंगाई व भ्रष्टाचार से तो पूरे देश की जनता त्रस्त थी ही, फिर बिजली -पानी की समस्याओं की वजह से दिल्ली वासियों का जीना दूभर हो गया था तथा उनका आक्रोश शीला सरकार के प्रति बढ़ता ही गया.बिजली-पानी की समस्याओं को लेकर आम आदमी पार्टी के धरना प्रदर्शनों के कारण आम आदमी पार्टी दिल्ली में तो लोकप्रिय हुई ही साथ ही पूरे देश में इसकी पहचान बन गयी.
आम आदमी पार्टी ने जिस तरह कम खर्चे में जनता के बीच जा कर अपना प्रचार किया उसे भले ही आम जनता ने व मीडिया ने नया तरह का प्रयोग माना हो परन्तु छात्र जीवन में या बाद में जो लोग जनवादी आन्दोलनों का हिस्सा रह चुके हैं या जिन्होंने दूर से उन आन्दोलनों को देखा हो उन्हें आम आदमी पार्टी की कार्य शैली में बहुत नया पन देखने को नहीं मिला होगा, न ही उन्हें इनके कार्य करने के ढंग पर कोई आश्चर्य ही हुआ होगा. घर घर जा कर प्रचार करना,नुक्कड़ नाटकों,छोटी छोटी सभाओं व हस्तनिर्मित बैनरों-पोस्टरों से प्रचार करने की उनकी यह नीति जनवादी संगठनों में हमेशा से चली आयी है. उसका कारण भी है कि उन संगठनों के पास अन्य बड़े राजनीतिक संगठनों की तरह पानी की तरह बहाने हेतु धन का अभाव भी रहता है. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले क़ानून का नाम जनलोकपाल रखने से ही यह अहसास हो चुका था कि इस आन्दोलन के पीछे कहीं न कहीं अतीत में जनवादी संगठनों या उनकी विचारधाराओं से जुड़े हुए लोगों का मस्तिष्क कार्य कर रहा है. आज भी यदि देखा जाये तो जितने भी लोग इस आम आदमी पार्टी में मूल रूप से जुड़े हुए हैं उन में से अधिकाँश की पृष्ठ भूमि या तो धुर वामपंथी या समाजवादी संगठनों की रही है.विज्ञान व तकनीक के आधुनिक काल में इन लोगों ने अपनी जनवादी सोच को ही कुछ परिष्कृत कर प्रदर्शित करने का प्रयासकिया है.
अंत में जिस प्रकार आम आदमी पार्टी कांग्रेस के समर्थन के बाद कांग्रेस से अपनी 18 शर्तों वाली चिट्ठी का जवाब पाने के बाद जनता के बीच गयी और इन्होंने जनता से सोसल मीडिया,एसएमएस के जरिये प्रतिक्रियाएं प्राप्त कीं औरदिल्ली के विभिन्न वार्डों में जा कर जन सभाएं कीं वह भी कोई नयी बात नहीं थी. सोसल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक माध्यमों का प्रयोग तो ये लोग जनलोकपाल के आन्दोलन के समय से ही करते आ रहे थे.रही बात सभाओं में व्यक्तियों से हाथ खडा करवा के उनकी सहमति या असहमति जानने की तो भले ही मीडिया ने यह प्रचारित किया हो कि यह नया तरीका है, मुझे इसमें कुछ भी नया नहीं लगा.जिसने भी पिछले कुछ महीनों की भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी की सभाओं पर गौर किया हो उन्होंने देखा होगा कि वे लगभग हर सभा में मंच से अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर के लिए लोगों की सहमति व असहमति प्रकट करवाने के लिए हाथ उठवातेहैं. यद्यपि उन सभाओं में अधिकाधिक भीड़ के कारण न तो उठे हुए हाथों को गिना जा सकता है न ही उसे किसी आंकड़े के रूप में प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता ही रहती है.
एक अन्य रूप में भी जन सभाओं और जन अदालतों का प्रचलन हमारे देश में प्रचलित है.छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के नक्सली संगठन अक्सर जनसभाएं व जन अदालतें करते रहते हैं और जन अदालतों के माध्यम से अपने फैसले लेते रहते हैं.
निष्कर्षत: आम आदमी पार्टी द्वारा अपनाया जाने वाला प्रयोग एकदम नया व अपने किस्म का अनूठा नहीं कहा जा सकता.
दरअसल पूरे देश में बहुत बड़ी संख्या में लोग वर्तमान सड़ी गली राजनीतिक व्यवस्था से तंग आ चुके हैं और जनता का बहुत बड़ा वर्ग व्यवस्था परिवर्तन की चाह रखता है. आये दिन रोजमर्रा के कामों से लेकर बड़े बड़े सौदों में बढ़ते भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के ऊपर किसी तरह की लगाम न लगा पाने के कारण भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगा सकने वाले क़ानून कीआवश्यकता महसूस की गयी.इस प्रयोजन से सिविल सोसायटी के कुछ सदस्यों ने मिलकर जनलोकपाल जैसे एक क़ानून का खाका तैयार किया और प्रसिद्ध समाज सेवी अन्ना हजारे के चेहरे को सामने रख एक देशव्यापी आन्दोलन चलाया. अन्ना हजारे के आन्दोलन को पूरे देश में जिस तरह का समर्थन मिला वह अभूतपूर्व था. शुरूआत में तो ऐसे संकेत भी मिले कि जनलोकपाल क़ानून को संसद की स्वीकृति मिल जायेगी पर राजनीतिक दलों के अंतर्विरोध के कारण हर बार यह जनलोकपाल बिल किसी न किसी कारण से पारित नहीं हो सका.
अन्ना केआन्दोलन से समाज के हर विचारधारा के लोग जुड़े थे. इस आन्दोलन में ऐसे लोग भी थे जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ भी थीं जो किन्हीं कारणों से पूरी नहीं हो पायीं थीं. विभिन्न राजनीतिक संगठनों से जुड़े ऐसे लोग भी इस आन्दोलन में सम्मिलित थे जो अपने दलों में हाशिये पर आ गए थे. आन्दोलन को मिले देशव्यापी जन समर्थन से कुछ लोगों को लगा कि इस आन्दोलन का लाभ लेकर वे व्यवस्था परिवर्तन कर सकते हैं और उनकी इसी इच्छा ने आन्दोलन को किसी सफल परिणिति की ओर न पहुँचते देख एक नयी राजनीतिक पार्टी का गठन कर डाला,जिसे अत्यधिक विचार मनन के बाद आम आदमी पार्टी नाम दिया. इस पार्टी का संयोजक एक ईमानदार,संघर्षशील व स्वच्छ छवि वाले गैर राजनीतिक व्यक्ति श्री अरविन्द केजरीवाल को बनाया गया. मानाजाता है कि अन्ना हजारे के पूरे आन्दोलन के पीछे अरविन्द केजरीवाल ने ही मुख्य रणनीतिकार की भूमिका निभाई थी.
आम आदमी पार्टी के संस्थापकों ने बड़ी ही कुशलता से दिल्ली विधान सभा चुनाव के ठीक एक वर्ष पूर्व पूरी रणनीति के अनुसार अपनी पार्टी को दिल्ली विधान सभा के चुनावों में उतारने के उद्देश्य से गठित किया और उसके कार्यक्रम चलाये. दिल्लीविधानसभा के चुनावों से ही अपनी पार्टी की चुनावी राजनीति की शुरूआत करने के पीछे इन लोगों का उद्देश्य साफ़ था कि दिल्ली देश की राजधानी होने के कारण वहां पर होने वाली राजनीतिक गतिविधियों को पूरे देश में किसी भी अन्य स्थान की अपेक्षा अधिक प्रचार प्रसार मिलेगा. वैसे भी अन्ना व रामदेव के बड़े आन्दोलनों का केंद्र बिंदु दिल्ली ही थे. कामन वैल्थ घोटाला, 2 जी घोटाला आदि के कारण दिल्ली हमेशा सुर्ख़ियों में बनी रही. इसी बीच १६ दिसंबर २०१२ की दिल्ली गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और दिल्ली एक बार फिर स्व स्फूर्त जन आन्दोलनों का केंद्र बन गई थी. बढ़ती हुई महंगाई व भ्रष्टाचार से तो पूरे देश की जनता त्रस्त थी ही, फिर बिजली -पानी की समस्याओं की वजह से दिल्ली वासियों का जीना दूभर हो गया था तथा उनका आक्रोश शीला सरकार के प्रति बढ़ता ही गया.बिजली-पानी की समस्याओं को लेकर आम आदमी पार्टी के धरना प्रदर्शनों के कारण आम आदमी पार्टी दिल्ली में तो लोकप्रिय हुई ही साथ ही पूरे देश में इसकी पहचान बन गयी.
आम आदमी पार्टी ने जिस तरह कम खर्चे में जनता के बीच जा कर अपना प्रचार किया उसे भले ही आम जनता ने व मीडिया ने नया तरह का प्रयोग माना हो परन्तु छात्र जीवन में या बाद में जो लोग जनवादी आन्दोलनों का हिस्सा रह चुके हैं या जिन्होंने दूर से उन आन्दोलनों को देखा हो उन्हें आम आदमी पार्टी की कार्य शैली में बहुत नया पन देखने को नहीं मिला होगा, न ही उन्हें इनके कार्य करने के ढंग पर कोई आश्चर्य ही हुआ होगा. घर घर जा कर प्रचार करना,नुक्कड़ नाटकों,छोटी छोटी सभाओं व हस्तनिर्मित बैनरों-पोस्टरों से प्रचार करने की उनकी यह नीति जनवादी संगठनों में हमेशा से चली आयी है. उसका कारण भी है कि उन संगठनों के पास अन्य बड़े राजनीतिक संगठनों की तरह पानी की तरह बहाने हेतु धन का अभाव भी रहता है. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले क़ानून का नाम जनलोकपाल रखने से ही यह अहसास हो चुका था कि इस आन्दोलन के पीछे कहीं न कहीं अतीत में जनवादी संगठनों या उनकी विचारधाराओं से जुड़े हुए लोगों का मस्तिष्क कार्य कर रहा है. आज भी यदि देखा जाये तो जितने भी लोग इस आम आदमी पार्टी में मूल रूप से जुड़े हुए हैं उन में से अधिकाँश की पृष्ठ भूमि या तो धुर वामपंथी या समाजवादी संगठनों की रही है.विज्ञान व तकनीक के आधुनिक काल में इन लोगों ने अपनी जनवादी सोच को ही कुछ परिष्कृत कर प्रदर्शित करने का प्रयासकिया है.
अंत में जिस प्रकार आम आदमी पार्टी कांग्रेस के समर्थन के बाद कांग्रेस से अपनी 18 शर्तों वाली चिट्ठी का जवाब पाने के बाद जनता के बीच गयी और इन्होंने जनता से सोसल मीडिया,एसएमएस के जरिये प्रतिक्रियाएं प्राप्त कीं औरदिल्ली के विभिन्न वार्डों में जा कर जन सभाएं कीं वह भी कोई नयी बात नहीं थी. सोसल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक माध्यमों का प्रयोग तो ये लोग जनलोकपाल के आन्दोलन के समय से ही करते आ रहे थे.रही बात सभाओं में व्यक्तियों से हाथ खडा करवा के उनकी सहमति या असहमति जानने की तो भले ही मीडिया ने यह प्रचारित किया हो कि यह नया तरीका है, मुझे इसमें कुछ भी नया नहीं लगा.जिसने भी पिछले कुछ महीनों की भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी की सभाओं पर गौर किया हो उन्होंने देखा होगा कि वे लगभग हर सभा में मंच से अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर के लिए लोगों की सहमति व असहमति प्रकट करवाने के लिए हाथ उठवातेहैं. यद्यपि उन सभाओं में अधिकाधिक भीड़ के कारण न तो उठे हुए हाथों को गिना जा सकता है न ही उसे किसी आंकड़े के रूप में प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता ही रहती है.
एक अन्य रूप में भी जन सभाओं और जन अदालतों का प्रचलन हमारे देश में प्रचलित है.छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के नक्सली संगठन अक्सर जनसभाएं व जन अदालतें करते रहते हैं और जन अदालतों के माध्यम से अपने फैसले लेते रहते हैं.
निष्कर्षत: आम आदमी पार्टी द्वारा अपनाया जाने वाला प्रयोग एकदम नया व अपने किस्म का अनूठा नहीं कहा जा सकता.
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