विशेषाधिकार नोटिस के जवाब में अरविन्द केजरीवाल ने जो कुछ कहा है मैं उसका पूरी तरह से समर्थन करता हूँ. किसी को सम्मान देना या न देना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है तथा किसी भी व्यक्ति को इसके लिए बाध्य नही किया जा सकता.सम्मान माँगने से नही मिलता बल्कि जो इसको पाने का हक़दार है उसे स्वयं ही मिल जाता है. क्या आज देश के अधिकांश राजनीतिज्ञ इस सम्मान को पाने के हकदार हैं ? नहीं. १९४२ के भारत छोडो आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने "करो या मरो" का नारा दिया था. आज ७० वर्षों बाद यह "करो या मरो" का नारा एक बार फिर दोहराने की जरूरत है. उस समय की मांग थी "अंग्रेजों भारत छोडो". आज की माँग है " भ्रष्टाचारियो व अपराधियों संसद छोड़ो ". जब तक संसद में बैठे हुए भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अच्छे,ईमानदार व स्वच्छ छवि वाले व्यक्तियों से प्रतिस्थापित नही कर दिया जाता तब तक लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर की पवित्रता व सर्वोच्चता को पुनर्स्थापित कर इसका खोया हुआ सम्मान वापस नही लौटाया जा सकता. यह काम केवल टीम अन्ना का ही नहीं बल्कि संसदीय लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि अपराधियों और भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को संसद और विधान सभाओं से बाहर खदेड़ने के पुनीत कार्य में अपना हर संभव पुरजोर सहयोग करें.
भारत माता की जय.
!!!जय हिंद !!!
Friday, March 30, 2012
Tuesday, March 20, 2012
Increasing retirement age of professors
CHHATTISGARH ASSEMBLY : CHIEF MINISTER DECLARES RETIREMENT AGE OF TEACHERS IN HIGHER EDUCATION WILL INCREASE FROM 62 TO 65
सेवारत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने की मांग हमेशा होती रहती है तथा सरकारें भी अपनी सुविधानुसार आयु सीमा में वृद्धि करती रहती हैं. संसद और विधान सभाओं में बैठे राजनीतिक लोगों को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने की आवश्यकता महसूस नही होती.जो लोग अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की मांग करते हैं व मांग मंजूर होने पर खुश हो कर एक दूसरे को बधाई देते हैं वे शायद यह नहीं सोचते या अपने निहित स्वार्थ के कारण सोचना नहीं चाहते कि ऐसा करने से बेरोजगारी की लम्बी कतारों में लगे नवयुवकों को क्या नुकसान होने वाला है. उन्हें और इंतज़ार करना पडेगा तथा कई नवयुवक सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ जाने के कारण सेवा में भरती की उम्र ही पार कर जायेंगे. दुर्भाग्य की बात यह है कि नवयुवकों के हितों की बात करने वाला कोई भी संगठन इस बारे में नही सोचता.यहाँ तक कि छात्रों की ओर से भी इस प्रकार की बात नही उठती कि सेवारत व्यक्तियों की आयु सीमा बढ़ने से उनके भविष्य पर विपरीत असर पडेगा.
उच्च शिक्षा में आयु सीमा बढ़ाने के पीछे सरकार शिक्षकों की कमी को आधार बनाती है पर नए शिक्षकों की भरती के लिए कारगर कदम नही उठाती.यदि कार्यरत शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के स्थान पर नई भर्तियाँ की जाएँ तो जहाँ एक ओर बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मिलेगा वहीं सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम पड़ेगा. सेवानिवृत्ति के समय अपने वेतन के अधिकतम पर रहने वाला व्यक्ति नई भर्ती वाले व्यक्ति से लगभग चार गुना वेतन पाता है ,ऐसे में एक व्यक्ति के वेतन में चार नई नियुक्तियां की जा सकती हैं.वैसे भी ६२ वर्ष की आयु प्राप्त करते करते अधिकाँश व्यक्तियों की शारीरिक क्षमता ,पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा अन्य कारणों से अपने कर्त्तव्य के प्रति रूचि कम हो जाती है, जब कि नया व्यक्ति पूरे उत्साह,क्षमता व ऊर्जा से कार्य करता है. यह भी उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि की मांग करने वाले कई व्यक्ति तो ऐसे होते हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में अपने मूल कर्त्तव्य को प्राथमिकता ही नहीं दी .ऐसे लोग बढी हुई आयु सीमा में क्या कुछ कर पायेंगे ? सरकारें शिक्षकों की कमी से निपटना ही चाहती हैं तो वे कर्तव्यनिष्ठ ,योग्य व सक्षम शिक्षकों को आवश्यकतानुसार पुनर्नियुक्ति या संविदा आधार पर नियुक्ति दे सकती है.
सेवारत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने की मांग हमेशा होती रहती है तथा सरकारें भी अपनी सुविधानुसार आयु सीमा में वृद्धि करती रहती हैं. संसद और विधान सभाओं में बैठे राजनीतिक लोगों को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने की आवश्यकता महसूस नही होती.जो लोग अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की मांग करते हैं व मांग मंजूर होने पर खुश हो कर एक दूसरे को बधाई देते हैं वे शायद यह नहीं सोचते या अपने निहित स्वार्थ के कारण सोचना नहीं चाहते कि ऐसा करने से बेरोजगारी की लम्बी कतारों में लगे नवयुवकों को क्या नुकसान होने वाला है. उन्हें और इंतज़ार करना पडेगा तथा कई नवयुवक सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ जाने के कारण सेवा में भरती की उम्र ही पार कर जायेंगे. दुर्भाग्य की बात यह है कि नवयुवकों के हितों की बात करने वाला कोई भी संगठन इस बारे में नही सोचता.यहाँ तक कि छात्रों की ओर से भी इस प्रकार की बात नही उठती कि सेवारत व्यक्तियों की आयु सीमा बढ़ने से उनके भविष्य पर विपरीत असर पडेगा.
उच्च शिक्षा में आयु सीमा बढ़ाने के पीछे सरकार शिक्षकों की कमी को आधार बनाती है पर नए शिक्षकों की भरती के लिए कारगर कदम नही उठाती.यदि कार्यरत शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के स्थान पर नई भर्तियाँ की जाएँ तो जहाँ एक ओर बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मिलेगा वहीं सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम पड़ेगा. सेवानिवृत्ति के समय अपने वेतन के अधिकतम पर रहने वाला व्यक्ति नई भर्ती वाले व्यक्ति से लगभग चार गुना वेतन पाता है ,ऐसे में एक व्यक्ति के वेतन में चार नई नियुक्तियां की जा सकती हैं.वैसे भी ६२ वर्ष की आयु प्राप्त करते करते अधिकाँश व्यक्तियों की शारीरिक क्षमता ,पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा अन्य कारणों से अपने कर्त्तव्य के प्रति रूचि कम हो जाती है, जब कि नया व्यक्ति पूरे उत्साह,क्षमता व ऊर्जा से कार्य करता है. यह भी उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि की मांग करने वाले कई व्यक्ति तो ऐसे होते हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में अपने मूल कर्त्तव्य को प्राथमिकता ही नहीं दी .ऐसे लोग बढी हुई आयु सीमा में क्या कुछ कर पायेंगे ? सरकारें शिक्षकों की कमी से निपटना ही चाहती हैं तो वे कर्तव्यनिष्ठ ,योग्य व सक्षम शिक्षकों को आवश्यकतानुसार पुनर्नियुक्ति या संविदा आधार पर नियुक्ति दे सकती है.
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