जब लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी
का रास्ता छोड़ कर सरल तरीकों से बहुत अधिक धन कमाना या अन्य इच्छाएँ पूरी
करना चाहते हैं तो उन्हें कथित देवी देवताओं और चमत्कारिक बाबाओं की शरण
में जाना ही पड़ता है. यह सभी को मालूम है कि यदि ईश्वर कहीं है तो वह केवल
इंसान के अन्दर ही है. चमत्कारिक बाबाओं को प्रचारित प्रसारित करने में
हमारी सरकार की नीतियाँ व मीडिया भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितने
अन्धविश्वासी लोग.शायद कोई विश्वास न करे,मैंने जब से होश सम्भाला है,कभी
ईश्वर से भी अपने स्वयं के लिए कुछ नही माँगा,इंसान या किसी चमत्कारिक बाबा
से माँगना तो बहुत दूर की बात है. आज विज्ञापन का युग है तथा बेवकूफ बनाना
भी एक कला है.जो दूसरों को जितना अधिक बेवकूफ बनाने में सफल हो जाए वही
आज के युग में उतना ही अधिक बुद्धिमान है.शायद ही जीवन का कोई ऐसा
क्षेत्र हो जहां इस बेवकूफ बनाने वाली कला का धड़ल्ले से उपयोग नही किया जा
रहा हो.धर्म और अध्यात्म का क्षेत्र भी इस कला से अछूता नही है. विभिन्न
उत्पादों के टी.वी. आदि में प्रसारित विज्ञापन भी यही कार्य कर रहे हैं.
कोई क्रीम एक हफ्ते में भैंस को गोरा बनाने का दावा करती है तो कोई दवा
असाध्य रोगों को शर्तिया ठीक करने का दावा करती है.ऐसा शायद ही कोई उत्पाद
हो जो विज्ञापन में बताये गए दावों पर पूरा तो क्या आंशिक रूप से भी खरा
उतर सकता हो.जिन बाबाओं को धन और यश कमाने की इच्छा रहती है वे भी इसी
प्रकार प्रचार माध्यमों का सहारा लेते हैं. जिन्हें वास्तव में ईश्वरीय
शक्तियों से थोड़ा बहुत भी कुछ प्राप्त हो जाता है वे प्रचार से बहुत दूर
हिमालय की कंदराओं में शान्ति की खोज में लगे रहते हैं तथा जिन्हें ईश्वर
की कृपा से कुछ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है वे धन संग्रह ना कर अपना
जीवन परमार्थ व जनकल्याण के लिए लगा देते हैं.